गुरुवार, 1 मार्च 2012

झांसी की रानी लक्ष्मी बाई

सन अट्ठारह सौ पैंतीस में रानी झांसी ने था जन्म लिया
भारत की सोई जनता को उसने स्वतंत्रता पाठ पढ़ा दिया
दिखला दिया उसने फ़िरंगी को, है सिंहनी भारत की नारी
जिसे देख के वो तो दंग हुए, पर गद्दारों ने मार दिया

अकसर बालक बचपन में हैं खेलते खेल खिलौनों से

पर शुरु से ही इस कन्या ने ऐसा अपने को ढाल लिया

वो खेलती थी तलवारों से, तोड़ती नकली महलों को

और साथ में उसके नाना थे, जिनसे युद्ध का ज्ञान लिया


बचपन का नाम मनु उसका, सब कहते उसे छबीली थे

वो चिढ़ती, सब हँसते थे, यूँ यौवन देहरी को पार किया

झांसी के राजा गंगाधर से जब पाणिग्रहण संस्कार हुआ

मनु से बनी लक्ष्मी बाई, नया नाम सहर्ष स्वीकार किया


हुआ एक पुत्र, पर उसने जल्दी अपनी आँखें बन्द करींदामोदर राव को रानी ने पुत्र मान कर गोद लियाथे सदा ही उसकी सेवा में सुन्दर, मुन्दर और काशी भीजिनके हाथों की चोटों ने, शत्रु को पानी पिला दियाकुछ समय बाद राजा ने भी इस जग से नाता तोड़ाफिर रानी गद्दी पर बैठी, सत्ता को अपने हाथ लियासागर सिंह डाकू को उसने और मुन्दर ने यूँ जा पकड़ावो वीर थी जैसे दुर्गा हो, सब ने यह लोहा मान लियाअब अंग्रेज़ों ने सोचा झांसी बिल्कुल ही लावारिस हैउसे घेर हथियाने का कपट, उन्होंने मन में धार लियाबढ़ा रोज़ सोच यह आगे, झांसी बस अब अपने हाथ में है पर धन्य वो रानी जिसने युद्ध चुनौती को स्वीकार किया रानी कूदी रणभूमी में, हज़ारों अंग्रेज़ों के आगेदो दो तलवारें हाथ में थीं, मुँह से घोड़े को थाम लियाबिछ जाती दुशमन की लाशें जिधर से वो निकलेअंग्रेज़ भी बहुत हैरान हुए, किस आफ़त ने आ घेर लियामोती बाई की तोपों ने शत्रु के मुँह को बन्द कियासुन्दर मुन्दर की चोटों ने रण छोड़ दास को जन्म दियाशाबाश बढ़ो आगे को जब रानी ऐसा चिल्लाती थीमुठ्ठी भर की फ़ौज ने मिल, अंग्रेज़ों को बेहाल किया जब कुछ भी हाथ नहीं आया, रोज़ दिल ही दिल घबरायाइक अबला के हाथों से पिटकर सोचने पर मजबूर कियाछल, कपट और मक्करी से मैं करूँ इस को कब्ज़े मेंपीर अली और दुल्हाज़ू ने, गद्दारी में रोज़ का साथ दियादुल्हाजू ने जब किले का फाटक अंग्रेज़ों को खोल दियाफिर टिड्डी दल की भाँती उस शत्रु ने पूरा वार किया रानी निकली किले से अपने पुत्र को पीठ पे लिए हुएसीधी पहुँची वो कालपी कुछ सेना को अपने साथ लियाफिर घमासान युद्ध हुआ वहाँ थोड़ी सी सेना बची रहीइक दुशमन ने गोली मारी, दूजे ने सिर पर वार कियापर भारत की उस देवी ने दोनों को मार नरक भेजाऔर साथ उसने भी अपने प्राणों का मोह त्याग दिया
रानी तो स्वर्ग सिधार गई पर काम अभी पूरा न हुआस्वतंत्रता संग्राम के दीपक को अगली पीढ़ी को सौंप दियातुम तोड़ फेंकना मिलकर सब ग़ुलामी की इन ज़ंज़ीरों कोऔर भारत को स्वतंत्र करने का सपना सभी पर छोड़ दिया

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